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Chapter 3

राधा को रोता हुआ देख अंजली हैरान हो जाती है और कहती है, “ अरे राधा तुम रो क्यों रही हो? देखो हम सबके पास भी तो वही नंबर आते हैं जो मौजूद है। अब इसके अलावा हम बाहर से नंबर लाकर तो क्रेडिट कार्ड नहीं बेच सकते हैं ना? कोशिश करो हो जाएगा तुमसे भी एक सेल।”

तभी पूरे फ्लोर पर फिर से तालियां बजने लगती है । क्योंकि इस फ्लोर की टॉपर ज्योति ने फिर से सुबह-सुबह एक सेल कर दी थी। और उसके नाम पर सब लोग तालियां बजा रहे थे। यहां तक की मैनेजर साहब भी ज्योति को देख कर कहते हैं, “ वेल डन ज्योति । हमें तुमसे ऐसे ही काम की उम्मीद है।”

और उसके बाद मैनेजर साहब राधा की तरफ देखते हुए बोले, “ बाकी लोगों को तुमसे कुछ सीखना चाहिए।”

राधा अपना चेहरा शर्म से नीचे कर लेती है। सब लोग फिर से अपने-अपने काम पर बैठ जाते हैं। लेकिन अंजली दीदी गुस्से में ज्योति की तरफ दिखती है और कहती है, “ बीच कहीं की… क्या मुझे नहीं पता यह इतने सारे क्रेडिट कार्ड कैसे बेच लेती है ? हम सब पागल है। सुबह से शाम तक यहां पर कस्टमर के साथ बात कर करके उनकी गलियां खा खा के एक क्रेडिट कार्ड नहीं बेच पाते हैं और यह आने के साथ ही क्रेडिट कार्ड बेच देती है। कस्टमर केयर इसके मां का लड़का है? जो इससे कुछ खरीदेगा ?”

राधा ने हैरानी से कहा, “ क्या मतलब है दीदी, कि ज्योति हमसे अलग काम करती है। पर है तो वह भी सेल्स गर्ल। उसका भी काम क्रेडिट कार्ड बेचना है। तो फिर वह अलग कैसे हुई? हो सकता है वह सेल्स में अच्छी हो।”

अंजली दीदी ने राधा से कहा, “ अरे कोई अच्छी वच्छी नहीं है । वह तो हमसे भी बड़ी गोबर है। कस्टमर से बात तक करना नहीं आता है। फिर भी इस महीने की सबसे ज्यादा सेल करके बैठी हुई है। क्या तुझे नहीं पता, कि उसने इतने सारे सेल कैसे किए हैं।”

राधा हैरान हो जाती है और हैरानी से वह ज्योति को देखने लगती है। जो मुस्कुराते हुए अपने वर्कस्टेशन पर बैठ कर नेल पेंट लग रही थी। उसे ज्योति से कभी कोई प्रॉब्लम नहीं रही है। राधा बस अपना काम करती थी। यह बात राधा अच्छी तरह से महसूस कर पा रही थी। जहां पर इस फ्लोर पर और भी 20 लड़कियां हैं वह सब मिलकर भी दिन के चार से पांच सेल नहीं कर पाती थी। तो वहीं ज्योति अकेली ही 10 सेल कर दिया करती थी। आज इस बात को सोच कर राधा हैरान हो जाती है और हैरानी से अंजली दीदी से कहती है, “ अंजली दीदी ज्योति हमारे जैसा काम नहीं करती है क्या ?”

अंजली दीदी अपना सर पीट लेती है और कहती है, “ अरे काम तो हमारे जैसा ही करती है। लेकिन उसके काम करने का तरीका अलग है और काम मांगने का भी।”

राधा को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था। तो अंजली दीदी ने धीरे से राधा का सर ज्योति की तरफ किया और कहा, “ जरा देखो वह बैठी कहां है और जरा देखो उसके चेहरे के एक्सप्रेशन।”

राधा तिरछी नजरों से ज्योति को देखा। तो उसके बैठने की जगह सीधी मैनेजर साहब के कमरे के सामने थी और उन दोनों के बीच में सिर्फ एक कांच की खिड़की थी। तभी राधा देखती है, कि ज्योति अपने आंखों से कुछ इशारे कर रही है । और वही इशारा मैनेजर साहब अपने अंदर बैठे खिड़की से भी कर रहे हैं।

राधा ने हैरान होते हुए कहा, “ इसका क्या मतलब है ?” अंजली दीदी ने कहा, “ इसका मतलब यह है, कि इन दोनों का कोई सीन चल रहा है। तुम्हें क्या लगता है, राधा मैनेजर साहब कोई दूध के धुले हुए हैं । शादीशुदा हैं। एक बच्चे के बाप हैं और उसके बाद भी ज्योति के साथ चक्कर चला रहे हैं। तुम्हें क्या लगता है ज्योति यूं ही टॉप पर है। अरे नहीं । इसके पीछे मैनेजर साहब का हाथ है ।

हमें जो नंबर मिलते हैं वह तो छोटे-मोटे नौकरी करने वाले और छोटे-मोटे व्यापारियों के होते हैं। ज्यादा से ज्यादा रिक्शा चलाते हैं । जॉब करते हैं या फिर अपना कोई छोटा-मोटा कारोबार होता है । जैसे कोई बनिया हो गया या फिर कोई कपड़े वाला हो गया । तुम्हें क्या लगता है ? जो लोग रोज स्ट्रगल करते हैं, उन्हें क्रेडिट कार्ड की जरूरत पड़ती होगी ? उन्हें तो पता है क्रेडिट कार्ड एक तरह का नशा है और यह एक जुआ है।

नहीं राधा ऐसे लोग बहुत मुश्किल से क्रेडिट कार्ड लेते हैं। और जहां तक हो सके, तो नहीं लेते हैं। पर ज्योति के अलग ही रंग है। उसे कभी भी ऐसे छोटे लोगों से बात नहीं करनी पड़ती है। क्योंकि मैनेजर साहब ज्योति को अलग से नंबर देते हैं। बड़े बिजनेसमैन, हाई प्रोफाइल लोग। जो लाखों करोड़ों की डील की मीटिंग में बैठे होते हैं। ऐसे लोग लेते हैं क्रेडिट कार्ड। और ज्योति बस उन्हें ही फोन करती है।

क्योंकि मैनेजर साहब ज्योति को अलग से नंबर देते हैं। बिजनेसमैन के नंबर । शहर के जाने-माने लोगों के नंबर। और यह नंबर वह हमारी तरह उन्हें सिस्टम या कंप्यूटर पर नहीं देते हैं। क्योंकि ऐसा देंगे तो पकड़े जाएंगे। इसलिए ज्योति कभी भी अपना कंप्यूटर ऑन करके काम नहीं करती है। उसका सारा नंबर और डाटा एक कागज में जाता है । वह देखो उसके टेबल के ऊपर रखा हुआ है।”

राधा ने अपना चेहरा उठा कर देखा, तो सच में टेबल के ऊपर एक पेपर रखा हुआ था। और उसके ऊपर एक पेन रखा हुआ था। इसका मतलब ज्योति को सच में अलग से वीआईपी नंबर मिलते थे। मैनेजर साहब और ज्योति की इस हरकत पर राधा को गुस्सा आ जाता है। वह गुस्से में अपने हाथ पटकते हुए कहती है।

“ लेकिन अंजली दीदी यह बात तो बिल्कुल गलत है ना ? हमने पूरे महीने मेहनत की है। सुबह से लेकर शाम तक यहां बैठ कर कस्टमर की गलियां खाई है । और ऐसे में कोई और आकर मलाई खा जा रहा है ।”

अंजली दीदी अपने कंधे ऊंचकाते कहती है, “अब हम क्या ही कर सकते हैं? यह तो सेल्स का काम है। ऊपर चढ़ने के लिए हर किसी को सीडीओ की जरूरत होती है। ज्योति ने मैनेजर साहब को अपनी सीढ़ी बनाई है।”

लेकिन राधा उदास चेहरे के साथ कहने लगी, “ लेकिन इस सीढ़ी के चक्कर में यह लोग मेरे पैरों के नीचे से जमीन तक खींच ले रहे हैं। मेरी नौकरी पर बात आ गई है। अब आप ही बताइए. मैं क्या करूं ? शाम तक अगर मैंने इन्हें एक सेल करके नहीं दी, तो यह लोग तो मुझे नौकरी से निकालने के लिए एक पैर पर खड़े हैं।”

अंजली दीदी को राधा की हालत पर बुरा तो लग रहा था। लेकिन वह कर भी क्या सकती थी? उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा, “ मैं समझ सकती हूं राधा । लेकिन फिलहाल मैं तुम्हारी कोई हेल्प नहीं कर सकती हूं। मैं भी तो तुम्हारी तरह एक मामूली सी सेल्स गर्ल हूं। वैसे अगर तुम्हें सबसे अच्छी सेल करनी है और सबसे जल्दी करनी है। तो तुम ज्योति का वह वीआईपी नंबर वाला पेपर ले आओ। उसमें से जरूर तुम्हारी कोई ना कोई सेल हो जाएगी।”

अंजली दीदी ने यह बात बेफिक्री के साथ यूं ही राधा का मूड सही करने के लिए कहा था। लेकिन राधा को इस बात में प्लान नजर आया। वह हैरानी से ज्योति की तरफ देखती है । उसने धीरे से अंजली दी का हाथ पकड़ा और कहा, “ अगर ऐसी बात है तो ठीक है। आज शाम तक आपकी भी सेल होगी और मेरी भी। ज्यादा नहीं कम से कम हम दोनों मिलकर एक क्रेडिट कार्ड तो बेचेंगे ही।”

राधा यह कहते हुए अपनी जगह से खड़ी होती है और धीरे-धीरे कदमों से वह ज्योति की तरफ बढ़ने लगती है। और उसे ऐसा करता देख अंजली दी की आंखें बड़ी हो जाती है, “ मरवाएगी यह लड़की।”

वहीं दूसरी तरफ विक्रम अपनी गाड़ी ड्राइव करता हुआ कहीं जा रहा था । इस वक्त वह पूरी तरह से अकेला था। ना तो उसने अपने साथ बॉडीगार्ड रखे थे और ना हीं कोई सिक्योरिटी। वह अकेले ही ड्राइव करता जा रहा था। यह जीप विक्रम की पर्सनल जीप थी । जिसका इस्तेमाल ज्यादातर विक्रम अपने पर्सनल काम के लिए ही करता था। वरना वह ज्यादातर अपने लोगों के साथ ही गाड़ी में जाया करता था। लेकिन इस वक्त वह जीप में था और जीप हाईवे पर फुल स्पीड से चल रही थी।

विक्रम जैसे ही अपना फोन निकालता है और फोन का लॉक खोलता है, वैसे ही उसके आसपास फायरिंग होने लगती है। विक्रम हैरान हो जाता है और देखने लगता है। आसपास से अचानक से दो-तीन काली स्कॉर्पियो विक्रम के पीछे आ रही थी और उन्होंने विक्रम को दोनों तरफ से घेर लिया था।

स्कॉर्पियो के अंदर से विक्रम के ऊपर फायरिंग हो रही थी। विक्रम हैरान हो गया उसने जल्दी से अपनी गन निकाली और फायरिंग का जवाब देने लगा । लेकिन स्कॉर्पियो के अंदर से अंधाधुंध गोलियां चल रही थी। तभी एक गोली जाकर विक्रम की पीठ को छूकर निकली थी। लेकिन वहां पर जख्म बन जाता है। विक्रम के हाथ स्टीयरिंग व्हील पर लड़खड़ा जाते हैं।

विक्रम ने माहौल को समझा । स्कॉर्पियो की कार ने उसे दोनों तरफ से घेर लिया था और उस पर अंधाधुंध फायरिंग किए जा रही थी। विक्रम इस वक्त अकेला था और उसके हाथों में सिर्फ एक ही गन थी। जिसकी बुलेट भी खत्म हो चुकी थी। उसे अपने आदमियों को बुलाना होगा। लेकिन स्कॉर्पियो में मौजूद गुंडो ने विक्रम को 1 मिनट तक का टाइम नहीं दिया । उनकी फायरिंग रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।

विक्रम ने अपनी गाड़ी की दिशा मोडी और अपने साथ में चल रहे स्कॉर्पियो को टक्कर मार कर दूसरी तरफ कर दिया। विक्रम की गाड़ी अब हाईवे से उतर कर जंगल की तरफ चली जाती है। और वह जंगल के अंदर तेजी से अपनी गाड़ी भगाने लगता है।

स्कार्पियो ने भी अपनी दिशा मोडी और खुद को जंगल की तरफ कर लिया । वह भी विक्रम का पीछा करते हुए जंगल मैं अपनी गाड़ी भगा रहे थे। लेकिन विक्रम जंगल के अंदर उन स्कॉर्पियो में मौजूद गुंडो को चकमा देने में कामयाब हो गया । वह घने जंगल और पेड़ों के बीच में से अपनी गाड़ियों को ऐसे लेकर जाता है, कि उन्हें पहियों के निशान तक नहीं मिलते हैं।

गाड़ी एक जगह पर आकर रुक जाती है और उसमें से गुंडे बाहर निकलते हैं । वह अपनी खतरनाक नजरों से इधर-उधर देखते हुए विक्रम को ढूंढने लगते हैं। उन गुंडों का लीडर चिल्लाते हुए कहता है, “ जल्दी से ढूंढो उसे । उसका मिलना बहुत जरूरी है। उस आदमी ने मिनिस्टर साहब के बेटे को मारा है और मिनिस्टर साहब को उस आदमी की लाश चाहिए । खाली हाथ गए तो, मिनिस्टर साहब हमें लाश बना देंगे।”

होटल में तकक्ष ने जिस लड़के को मारा था, यह उसके बाप के गुंडे थे। जिसने अपने बेटे की मौत का बदला लेने के लिए विक्रम के पीछे अपने आदमियों को छोड़ा हुआ था। विक्रम अपनी जीप घने जंगलों के बीच ड्राइव करता हुआ अंदर की तरफ ले जाता है। उसे सामने की तरफ एक टूटा फूटा खंडहर सा नजर आता है। उसकी पीठ पर चोट लगी थी और वहां से बहुत ज्यादा खून निकल रहा था। अभी कुछ समय पहले ही एक गैंग लॉर्ड गैंग वॉर में विक्रम को पीठ पर ही बहुत जोर से चोट आई थी। और वहां पर बैक टू बैक दो गोलियां लगी थी। जिसकी वजह से वह एक महीने तक अस्पताल में भी एडमिट रहा था। लेकिन उसने जल्दी से रिकवर कर लिया था और वापस काम पर आ गया था।

पर अब उसे उसी जगह पर दोबारा से चोट लगी है। उसके पिछले घाव का दर्द अभी तक ठीक से ठीक भी नहीं हुआ था। लेकिन दोबारा से उसी जगह पर जख्म बन गया था। उसका खून रोकने का नाम ही नहीं ले रहा था और विक्रम का दर्द बढ़ता जा रहा था। अपनी जीभ को उस खंडहर के पास रोक कर विक्रम खंडहर के अंदर चला जाता है। वह लड़खड़ाते हुए कदमों से खुद को संभालता है और अंदर खंडहर के किसी कोने में जाकर उसने अपने आदमियों को फोन करना सही समझा।

जोरो से सांस लेता हुए विक्रम के पूरे चेहरे पर पसीना आ गया था और उसकी सांसे भी तेजी से चल रही थी। उसे दूर-दूर तक अपने कानो में स्कॉर्पियो की आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। पर खतरा अभी टला नहीं था। उसे महसूस हो गया था, कि यह लोग उसकी जान के दुश्मन है। और उसे जान से मारने ही आए हैं। जितनी जल्दी हो सके उसे अपने आदमियों को यहां बुलाना ही होगा। विक्रम अपना फोन निकालता है, तो उसकी आंखें हैरानी से

बड़ी हो जाती है क्योंकि उसके फोन में नेटवर्क ही नहीं था।

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