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Chapter 1

होटल के एक प्राइवेट एरिया में दो काले कपड़ों में सशस्त्र बॉडीगार्ड खड़े थे। सोफे पर एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला आदमी बैठा हुआ था, जिसकी उपस्थिति ही भय उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त थी। दोनों बॉडीगार्ड एक-दूसरे को देख कर समझते हैं कि समय हो चुका है। उनमें से एक आगे बढ़कर झिझकते हुए कहता है,

"बॉस, मीटिंग का समय हो गया है। सामने वाली पार्टी ने दो बार कॉल किया है। क्या उन्हें कोई जवाब देना है? आप मीटिंग में आ रहे हैं या नहीं?"

सोफे पर बैठे उस आदमी ने धीरे से अपना ग्लास उठाया, एक झटके में उसमें बची शराब खत्म की और टेबल पर पटक दी। उसकी लाल, नशीली आँखें गुस्से में चमकने लगीं। उसने उस बॉडीगार्ड की ओर सर्द निगाहों से देखते हुए गहरी और तीखी आवाज में कहा,

"लगता है तुम नए हो यहाँ। इसीलिए विक्रम रायजादा से सवाल पूछने की हिम्मत कर रहे हो।"

दूसरा बॉडीगार्ड तुरंत आगे बढ़ा और पहले वाले को पीछे धकेलते हुए सिर झुका कर बोला,

"सॉरी बॉस, यह आज ही काम पर आया है। इसे नहीं पता कि आपको कैसे संबोधित करना है। सामने वाली पार्टी दो बार कॉल कर चुकी है, वे लोकेशन पर पहुँच चुके हैं और आपके आने का इंतजार कर रहे हैं।"

विक्रम धीरे-धीरे उठा और पहले बॉडीगार्ड के करीब जाकर उसे घूरते हुए बोला,

"आज से तुम्हारी ड्यूटी गार्डन में लगी। अब तुम वहाँ फूलों की देखभाल करोगे। क्योंकि तुम्हारे चेहरे पर जो डर है, वह विक्रम के बॉडीगार्ड बनने लायक नहीं।"

बॉडीगार्ड की हालत खराब हो गई। उसके माथे पर पसीना छलक आया। उसने जल्दी से सिर हिलाया और पीछे हट गया। विक्रम ने वाइन की बोतल उठाई और प्राइवेट एरिया से बाहर निकल गया।

होटल के दरवाजे तक पहुँचते ही एक शख्स उससे टकरा गया। विक्रम ने शराब पी रखी थी, इसलिए वह थोड़ा लड़खड़ा गया। उसके हाथों में पकड़ी वाइन की बोतल से कुछ बूंदें उस शख्स के महंगे कपड़ों पर गिर गईं।

सामने खड़ा युवक तुरंत भड़क उठा। उसने गुस्से में विक्रम का कॉलर पकड़ लिया और दाँत भींचकर बोला,

"साले! देख कर नहीं चल सकता? अंधा हो गया है क्या? तूने मेरी महंगी जैकेट खराब कर दी!"

विक्रम की आँखें सर्द हो गईं। उसने अपने गिरेबान की ओर देखा, जिसे वह युवक कसकर पकड़े था। होटल का पूरा माहौल पल भर में बदल गया। म्यूजिक बंद हो गया, डांस कर रहे लोग वहीं जम गए।

अचानक, एक गोली की आवाज़ गूँजी।

सामने खड़ा युवक जमीन पर पड़ा था। उसके माथे के बीचों-बीच गोली लगी थी, खून बह रहा था। विक्रम के हाथ में पिस्तौल थी। उसने बिना एक पल गँवाए अपनी कमर से गन निकाली और युवक के सिर में गोली मार दी थी।

पूरा होटल भयभीत हो गया था। किसी की हिम्मत नहीं थी कि कुछ कह सके। युवक की लाश खून से सनी पड़ी थी, उसकी आँखें खुली थीं, और जुबान हल्के से बाहर निकली हुई थी।

विक्रम उसकी लाश के पास झुका, और धीमे लेकिन ठंडे स्वर में फुसफुसाया,

"खिलौनों से खेलने की उम्र में बाप से पंगा नहीं लेना चाहिए।"

होटल में सन्नाटा छा गया। किसी ने कोई आवाज़ नहीं की। कुछ ही देर में होटल का मैनेजर घबराया हुआ वहाँ पहुँचा। उसने डरते-डरते विक्रम की ओर देखा और कांपती आवाज़ में बोला,

"सर, आप क्यों परेशान हो रहे हैं? आप जाइए, मैं सब संभाल लूँगा।"

विक्रम हल्की मुस्कान के साथ मैनेजर के कंधे पर हाथ रखता है और कहता है,

"इसीलिए तो तुम्हें हड्डी देता हूँ, ताकि तुम गंदगी साफ कर सको।"

विक्रम होटल से बाहर निकल गया। पीछे मैनेजर लाश को देखता रहा और घबराकर बुदबुदाया,

"अब इसका मैं क्या करूँ? यह कोई मामूली इंसान नहीं था... एक पॉलीटिशियन का बेटा था। एक तरफ गैंग लॉर्ड , दूसरी तरफ पॉलीटिशियन। मतलब एक तरफ कुआँ, दूसरी तरफ खाई। लेकिन कुछ भी हो, मुझे इसकी लाश इसके घर तो पहुँचानी ही होगी।"

गुजरात के एक प्रसिद्ध माता मंदिर की सीढ़ियों पर नंगे पैर चढ़ती एक लड़की, जिसने हल्के गुलाबी रंग का चूड़ीदार सूट पहना था, धीरे-धीरे ऊपर बढ़ रही थी। उसके खुले बाल हल्की हवा में लहरा रहे थे, और कानों में पड़ी कुंदन की बालियां मंद झोकों के साथ हल्के-हल्के झूल रही थीं।

सर्दी का मौसम तो नहीं था, लेकिन उसकी नाक बार-बार ऊपर खिंच रही थी, जैसे वह अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश कर रही हो। गुलाबी लिप ग्लॉस में लिपटे उसके होंठ हल्के-हल्के बुदबुदा रहे थे—शायद वह कोई शिकायत कर रही थी या फिर कोई मंत्र पढ़ रही थी। मंदिर की आखिरी सीढ़ी पार करने के बाद जैसे ही माता की मूर्ति पर उसकी नजर पड़ी, वह गुस्से से भड़कती हुई आगे बढ़ी और झटके से मंदिर का घंटा बजाने लगी।

लगभग दस से पंद्रह बार लगातार घंटी बजाने के बाद, उसने माता रानी को घूरते हुए अपने दोनों हाथ जोड़कर गुस्से में कहा,

"मम्मी, क्या मांगा था मैंने आपसे? बस एक छोटी-सी विश! इतनी बड़ी-बड़ी चीजें लोग मांगते हैं और बदले में आपका हालचाल तक नहीं पूछते। लेकिन मैं? मैं तो रोज़ पूछती हूं—मम्मी, आप ठीक हो न? आपको कोई परेशानी तो नहीं? सर्दी में ठंड तो नहीं लगती? गर्मी में ज्यादा गर्मी तो नहीं होती? जब सैलरी मिलेगी, तो आपके लिए एक नई साड़ी जरूर लाऊंगी... बस मेरी नौकरी बचाए रखना।"

उसकी आवाज कंपकंपाने लगी थी।

"लेकिन आपने क्या किया? मेरी हालत और खराब कर दी! पहले मुझे इस महीने के आखिरी तक नौकरी से निकालने वाले थे, अब वे आज-कल में ही निकालने की सोच रहे हैं। एक छोटा-सा क्रेडिट कार्ड तो बिकवा दिया होता! पूरे महीने जीरो पर कौन रहता है?"

वह फूट-फूटकर रोना चाहती थी, लेकिन खुद को संभालते हुए बोली,

"आप तो जानती हैं, मम्मी, मैं एक कॉल सेंटर में टेलीकॉलर की नौकरी करती हूं। हर दिन एक क्रेडिट कार्ड बेचना होता है। लेकिन पिछले महीने से अब तक एक भी सेल नहीं कर पाई हूं। पहले महीने तो कंपनी ने सीखने के लिए टाइम दिया था, लेकिन अब? जो लोग मेरे बाद आए थे, उन्होंने भी दस-दस क्रेडिट कार्ड बेच दिए। और मैं? एक भी नहीं! मैनेजर ने साफ कह दिया है—अगर इस महीने खत्म होने से पहले मैंने एक क्रेडिट कार्ड नहीं बेचा, तो मुझे निकाल देंगे।"

उसकी आंखों में बेबसी साफ झलक रही थी।

"आप तो सब जानती हैं, मम्मी, यह नौकरी मेरे लिए कितनी जरूरी है। मैं इसे खो नहीं सकती। प्लीज, मम्मी, बस एक क्रेडिट कार्ड बिकवा दो आज! पूरे महीने में सबसे ज्यादा ज्योति ने बेचे हैं—चालीस क्रेडिट कार्ड! मुझे बस एक चाहिए, ताकि मेरी नौकरी बच जाए।"

माता रानी से अपना दर्द कहने के बाद उसने गहरी सांस ली, हाथ जोड़े, और पलटने ही वाली थी कि पुजारी जी की आवाज आई,

"फिर से अपनी मां से शिकायत कर रही थी, राधा बेटा?"

राधा ने हल्की मुस्कान के साथ उनकी तरफ देखा और सिर हिलाते हुए कहा,

"और क्या करूं, पंडित जी? मेरी बातें सुनने वाला कोई और नहीं है। मां के जाने के बाद यही मेरी मम्मी हैं। मैं जानती हूं, यह सबकी माता हैं, लेकिन मेरे लिए सिर्फ मेरी मम्मी हैं। बस, किसी तरह इतनी भीड़ में मेरी आवाज मम्मी तक पहुंच जाए और वह मेरी नौकरी बचा लें।"

पंडित जी मुस्कुराते हुए उसके हाथ में प्रसाद रखते हैं और एक कलावा उठाकर उसकी कलाई पर बांधते हुए कहते हैं,

"बेटा, चिंता मत करो। माता अपने भक्तों की सुनती हैं। और तुमने तो उन्हें अपनी मां माना है। तुम्हारी बात जरूर सुनी जाएगी। देखना, तुम्हारी नौकरी नहीं जाएगी।"

कलावा देखकर राधा की आंखों में हल्की चमक आ गई। माता रानी की मूर्ति को एक बार फिर निहारते हुए उसने प्रणाम किया और मंदिर से बाहर निकल गई।

ऑटो में बैठते समय उसने एक बार फिर मंदिर की तरफ देखा। ऐसा लगा जैसे मुस्कुराती हुई माता की मूर्ति उससे कह रही हो, "फिकर मत करो, मैं तुम्हारे साथ हूं।"

मंदिर से निकलकर राधा तेजी से ऑफिस पहुंची। उसके कदमों में अब पहले जैसी झिझक नहीं थी। आज उसे पूरा यकीन था कि माता रानी उसकी सुनेंगी और वह अपनी नौकरी बचा लेगी।

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Mr Rakesh Mauryaya

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